स्थानीय वनस्पतियों में वैश्विक महामारी से बचाने की क्षमता है -प्रो. एन के दूबे* 

नागनाथ -पोखरी-


*समुदाय जनित ज्ञान को लेकर विश्व स्तर पर काम करने का युग है;- प्रो. एन के दूबे*।


आज  राजकीय महाविद्यालय नागनाथ-पोखरी के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा *मेडिसिनल प्लांट्स एंड कम्युनिटी हेल्थ* विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।


जिसमे देश के विभिन्न प्रान्तों के वैज्ञानिक, प्रोफसर तथा शोध छात्रों सहित कुल 300 वनस्पतिशास्त्रियों ने भाग लिया। वेबिनार के मुख्य अतिथि एवँ मुख्य वक्ता बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एन. के. दूबे, तथा विशिष्ट अतिथि डी. डी. यू . गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफसर वी. एन. पाण्डेय रहे। कार्यक्रम का प्रारंभ आयोजक सचिव डॉ अभय कुमार श्रीवास्तव ने माँ सरस्वती वंदना के साथ किया तथा वेबिनार की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज पूरा विश्व हर्बल मेडिसिन की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है। इसके साथ ही प्राचार्य प्रो. एस. के. शर्मा ने सभी अतिथियों एवँ श्रोताओं के स्वागत किया। कार्यक्रम में विशेषज्ञ वक्ता CSIR- NBRI, लखनऊ के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ शरद श्रीवास्तव एवं डॉ संजीवा नायका के साथ वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ प्रियंका अग्निहोत्री उपस्थित रहे। वेबिनार में वैज्ञानिकों का एक विशेष पैनल था जिसमे CSIR-NBRI लखनऊ के पूर्व वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ तारिक़ हुसैन, चाय अनुसंधान संस्थान नागरकाटा, पश्चिम बंगाल से डॉ. ए. के. पाण्डेय तथा BHU, वाराणसी के डॉ प्रशांत सिंह एवँ डॉ अभिषेक द्विवेदी उपस्थित रहे। 


मुख्य अतिथि प्रो. एन के दुबे ने अपने व्यख्यान में भारत में पाई जाने वाले औषधीय पौधों के पारंपरिक उपयोग एवँ महत्व को आयुर्वेद एवं भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ कर विस्तार पूर्वक बताया।


प्रो. दुबे ने कहा कि हमारी वनस्पतियों में ही हमारे निरोग रहने का रहस्य छिपा हुआ है। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पूरी तरह से वैज्ञानिक थी! उत्तराखंड हिमालय की संदर्भ में बताते हुए उन्होंने कहा की हिमालय जड़ी बूटियों का प्राकृतिक आवास है, जिसमे नाना प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियां पायी जाती हैं। इनमे से बहुत सी वनस्पतियां मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं, जैसे रोडिओला, अश्वगंधा गिलोय इत्यादि। इनके नियमित उपयोग मात्र से हम विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बच सकते हैं। आज COVID-19 की महामारी के समय में हमे एक बार पुनः अपनी प्राचीन आयुर्वेद पद्धति एवं औषधीय पौधों के महत्व को समझना होगा तथा स्थानीय समुदाय जनित ज्ञान को प्रमाणित करके आधुनिक उपयोग की तरफ कदम बढ़ाना होगा।  


कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो वी एन पाण्डेय ने *न्यूट्रास्युटिकल फाइटोकेमिकल* पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारे आस-पास, पाए जाने वाले ऐसे पौधें हैं जो भोजन एवँ औषधि दोनों में ही काम आते हैं। उत्तराखंड की राई में पाया जाने वाला ब्रेसिसिन तथा टमाटर में पाए जाने वाला लाईकोपिन जैसे एंटीऑक्सीडेंट रसायन मौजूद हैं जो हमें कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं।


डॉ शरद श्रीवास्तव ने औषधीय पौधों के खेती, उनके व्यवसाय पर जोर देते हुए कहा कि Covid-19 के दौर में प्रवासी मजदूर जो वापस आने गाँव आ गए हैं, उनके लिए यह औषधीय पौधे रोजगार का अच्छा अवसर बन सकते हैं। उन्होंने इन पौधों से प्रोडक्ट बनाने प्रमाणीकरण की विधि पर प्रकाश डालते हुए आयुष मंत्रालय, भारत सरकार की योजनाओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा किया। 


वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ संजीवा नायका ने लाइकेन के औषधीय महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह शैवाल और कवक की संजीवित से बना एक विशेष प्रकार पौधा है जो मुख्यतः चट्टानों तथा पेड़ के तनों पर चकत्ते के रूप में अथवा बालों के गुच्छे की तरह पाया जाता है। सामान्यतः लोग इसके बारे में अभी काम जागरूक हैं परंतु उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में इसका उपयोग औषधि, मसालों एवँ रंजक (डाई) के रूप में होता है। इन विशेष लाइकेन में भरपूर जैव संभावनाएं छिपी हुई हैं। जो शोध के लिए एक नया आयाम प्रदान करती हैं।


कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य प्रो एस के शर्मा ने सभी वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों को धन्यवाद ज्ञापन किया। वेबिनार का संचालन वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रध्यापक एवं अध्यक्ष डॉ अभय श्रीवास्तव ने किया। इस वेबिनार में महाविद्यालय के एसो. प्रोफेसर,डॉ एम एस चौहान, डॉ संजीव जुयाल, डॉ नंदकिशोर चमोला, डॉ वर्ष सिंह आदि उपस्थित रहे। 


वेबिनार को आयोजित करने में डॉ भानु, डॉ निधि, डॉ सिल्जो जोसफ, डॉ विवेक वैष्णव, एवँ डॉ सर्वेश पटेल की विशेष भूमिका रही।